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Blog / 31 May 2019

(राष्ट्रीय मुद्दे) भूख - असलियत और हल (Hunger: Reality and Solution)

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(राष्ट्रीय मुद्दे) भूख - असलियत और हल (Hunger: Reality and Solution)


एंकर (Anchor): कुर्बान अली (पूर्व एडिटर, राज्य सभा टीवी)

अतिथि (Guest): नरेश चंद्र सक्सेना (पूर्व सचिव, योजना आयोग), प्रो. आशा कपूर मेहता (विज़िटिंग प्रोफेसर, आईएचडी)

चर्चा में क्यों?

मार्च महीने के अंत (27 मार्च) में अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान ‘IFPRI’ ने एक रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट के मुताबिक़ भूख कुपोषण, ग़रीबी और जलवायु परिवर्तन जैसे कारकों के कारण दुनिया भर के ग्रामीण क्षेत्र संकट में हैं। रिपोर्ट में इन समस्यायों के चलते सतत विकास लक्ष्यों, वैश्विक जलवायु लक्ष्यों और बेहतर खाद्य व पोषण सुरक्षा के लिए बाधा बताया गया है। पिछले साल आई ग्लोबल हंगर इंडेक्स और ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2018 में भी भारत की रैंकिंग काफी ख़राब थी। एक ओर भारत जहां वैश्विक भूख सूचकांक में 119 देशों की सूची में 103 वे स्थान पर हैं तो वहीं ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2018 के मुताबिक़ भारत में क़रीब चार करोड़ 66 लाख बच्चों का कुपोषण के चलते लंबाई और वजन नहीं बढ़ा है।

भारत को भुखमरी के स्तर में ‘गंभीर श्रेणी’ में शामिल किया गया है। एशियाई देशों में भारत का प्रदर्शन काफी ख़राब दर्जे का है। भारत इस सूचकांक में भारत अपने कई पड़ोसी देशों नेपाल और बांग्लादेश से भी पीछे है। भारत सरकार की एजेंसी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक देश में कुल क़रीब 93.4 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषण का शिकार हैं।

क्या है ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) ?

ग्लोबल हंगर इंडेक्स GHI दुनिया के देशों में भुखमरी व कुपोषण की गणना और इसके तुलनात्मक अध्ययन के लिए एक बहुआयामी साधन है। इस इंडेक्स में दिखाया जाता है कि दुनिया भर में भूख के ख़िलाफ़ चल रही देशों की लड़ाई में कौन-सा देश कितना सफल और कितना असफल रहा है। भुखमरी से लड़ने में प्रगति और असफलताओं का आंकलन करने के लिये हर साल GHI स्कोर की गणना की जाती है। इस इंडेक्स में उन देशों को शामिल नहीं किया जाता है जो विकास के एक ऐसे स्तर तक पहुँच चुके हैं, जहाँ भुखमरी नाम मात्र की है।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स को मापने के पैमाने

1. अल्पपोषण (Undernourishment)
2. लंबाई के अनुपात में कम वजन, (Child Wasting)
3. आयु के अनुपात में कम लंबाई (Child Stunting)
4. बाल मृत्यु दर (Child Mortality)

ग्लोबल हंगर इंडेक्स के कुछ पुराने आंकड़े

पिछले चार सालों में भारत वैश्विक भूख सूचकांक की सूची में नीचे खिसकता जा रहा है।

1. साल 2014 में - 55वें
2. साल 2015 में - 80वें
3. साल 2016 में - 97 वें
4. साल 2017 में - 100वें
5. साल 2018 में - 103 वें पायदान पर है।

  • भारत में बढ़ रहा भूख संकट भारत के लिए चिंता का विषय है। पिछले साल जब ये रिपोर्ट आई तो उसी वक़्त अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की भी एक रिपोर्ट आई थी। मुद्रा कोष की इस रिपोर्ट में भारत को दक्षिण एशिया में सबसे तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्था बताया गया था। ऐसे में भारत में बढ़ती भुखमरी भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मज़बूत हो रही छवि पर सवाल खड़े करती है।

क्या है अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI) ?

अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान IFPRI विकासशील देशों में ग़रीबी, भूख और कुपोषण को कम करने के लिये सुझाव उपलब्ध कराता है। IFPRI का गठन 1975 में हुआ था। साल 2006 में पहली बार वैश्विक भूखमरी सूचकांक IFPRI के ज़रिए ही जारी किया गया था। तब से लेकर अब तक हर साल IFPRI के ज़रिए ही ग्लोबल हंगर इंडेक्स जारी किया जाता रहा है। हालांकि वर्ष 2018 से IFPRI ने वैश्विक भूख सूचकांक के प्रकाशन से ख़ुद को अलग करने का फैसला लिया है। अब ग्लोबल हंगर इंडेक्स 'वेल्ट हंगरहिल्फ' व 'कंसर्न वर्ल्डवाइड' की संयुक्त पहल पर आगे जारी रहेगा।

ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2018

ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2018 के मुताबिक, भारत में चार करोड़ 66 लाख ऐसे बच्चे है जिनका कुपोषण के चलते लंबाई और वजन नहीं बढ़ा है। भारत के 604 जिलों में से 239 जिलों में अविकसित बच्चों का प्रतिशत 40 फीसदी से अधिक है। हालांकि पहले की तुलना में भारत में अविकसित बच्चों या कुपोषित बच्चो के आंकड़े में कमी आई है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक 2005-06 से लेकर 2015-16 के बीच अविकसित बच्चों की संख्या में करीब 10 फीसदी की कमी आई है। 2005-06 में ये आंकड़ा 48 फीसदी बच्चों का था जो कि 2015-16 में 38.4 फीसदी पर आ गया है।

भारत में अपनी लंबाई के मुकाबले कम वजन वाले बच्चों की संख्या 2.55 करोड़ है। लंबाई के मुकाबले कम वजन होना पांच साल तक की उम्र वाले बच्चों में मौत की बड़ी वजह भी है। ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट WHO के द्वारा जारी की जाती है।

  • NHFS-4 (नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे) 2015 -16 के आंकड़ों के मुताबिक़ पांच साल से कम के क़रीब 38% बच्चे stunted ( आयु के अनुपात में कम लंबाई आयु के अनुपात में कम लंबाई ) हैं जबकि 21% बच्चे wasted (लंबाई के अनुपात में कम वजन) और 36% बच्चों का वजन औसत से कम है।
  • प्रति व्यक्ति खाद्य उपलब्धता (2017): इसके मुताबिक़ हर व्यक्ति को 190.5 ग्राम / दिन शुद्ध भोजन मिलना अनिवार्य है।
  • प्रति व्यक्ति कैलोरी सेवन: आर्थिक सहयोग और विकास संगठन OECD (Organisation for Economic Co-operation and Development ) की 2011-12 की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में प्रति व्यक्ति कैलोरी की मात्रा है 2445kcal दुनिया में सबसे कम में से एक
  • 2011 की जनगणना के मुताबिक़ क़रीब 25.7% आबादी ग्रामीण और 13.7 प्रतिशत शहरी आबादी भारत में ग़रीब थी
  • बहु-आयामी गरीबी सूचकांक (Multi-dimensional Poverty Index) 2016 के अनुसार लगभग 54% भारतीय जनसंख्या है ऐसी है जो Multi-Dimensionally Poor है क्यूंकि ये आबादी बेहतर जीवन-स्तर, शिक्षा और अच्छी गुणवत्ता की स्वास्थ्य सुविधएं पाने में असमर्थ है।
  • संविधान के अनुच्छेद 47 के मुताबिक़ पोषण, जीवन स्तर और सार्वजनिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का काम राज्य है। संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांत के मुताबिक़ स्वास्थ्य राज्यों का विषय है।

क्या है हिडेन हंगर ?

हिडेन हंगर की वजह विटामिन और खनिजों (vitamins and minerals) की कमी है। हिडेन हंगर की वजह से लोगों का विकास बाधित होता है, क्यूंकि लोगों के पास गुणवत्ता युक्त भोजन उपलब्ध नहीं होता। WHO के आंकड़े के मुताबिक़ दुनिया भर में क़रीब 2 बिलियन लोग हिडन हंगर का शिकार हैं। कम आय वाले परिवारों में ये समस्या सबसे ज़्यादा है। कम आय वाले परिवारों की महिलाओं और बच्चे सबसे ज़्यादा हिडेन हंगर का शिकार होते हैं। निश्चित मात्रा में विटामिन और खनिजों (vitamins and minerals) के न मिलने से लोग कुपोषण का शिकार हो जाते हैं।

खाद्य सुरक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय क़ानून

भोजन का अधिकार अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून (International Human Rights) के तहत मिला हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून सदस्य देशों के लिए खाद्य सुरक्षा के अधिकार के सम्मान, संरक्षण और लोगों तक इसकी पहुँच बनने की जिम्मेदारी सौंपता है। सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणापत्र (Universal Declaration of Human Rights) और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक अधिकारों (International Covenant on Economic, Social and Cultural Rights) के नियम पर भारत के समझौते के कारण भारत पर भूख से मुक्त होने और पर्याप्त भोजन के अधिकार को सुनिश्चित करने का दायित्व है।

खाद्य सुरक्षा में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका

संयुक्त राष्ट्र के अनुच्छेद 25 के मुताबिक़ हर व्यक्ति को ऐसे जीवन स्तर को हांसिल करने का हक़ है जो उसे और उसके परिवार के स्वास्थ्य और कल्याण के लिये ज़रूरी हो। संयुक्त राष्ट्र के अनुच्छेद 25 में रोटी, कपड़ा, मकान, चिकित्सा और ज़रूरी सामाजिक सेवाओं को शामिल किया गया है। इस अनुच्छेद के तहत हर किसी को बेकारी, बीमारी, असमर्थता, या बुढ़ापे जैसी मुश्किल परिस्थितियों के समय भी सुरक्षा का अधिकार प्राप्त है। इसके अलावा अनुच्छेद 25 के तहत मां और बच्चे को भी विशेष सुविधाएँ मिलने का अधिकार है

खाद्य सुरक्षा क्या है ?

खाद्य सुरक्षा का मतलब है कि सभी लोगों के पास हमेशा भोजन की उपलब्धता हो, भोजन तक पहुँच हो और उसे पाने के लिए सामर्थ्य यानी पैसा उपलब्ध रहे। किसी देश में खाद्य सुरक्षा केवल तभी सुनिश्चित होती है जब सभी लोगों के लिए पर्याप्त खाद्य उपलब्ध हो, सभी लोगों के पास गुणवत्ता युक्त खाद्य-पदार्थ खरीदने की क्षमता हो और खाद्य की उपलब्धता में कोई बाधा न हो।

खाद्य सुरक्षा के चार आयाम

1. पहुँच ACCESS
2. उपलब्धता AVAILABILITY
3. उपयोग STABILIZATION
4. स्थिरता UTILIZATION

खाद्य सुरक्षा क्यों ज़रूरी है?

समाज के सबसे ग़रीब तबक़े के पास हो सकता है हमेशा ही खाद्य असुरक्षा का संकट बना रहता हो लेकिन लेकिन जब देश भूकंप, सूखा, बाढ़, सुनामी, फसलों के ख़राब होने से पैदा होने से अकाल जैसी मुश्किलें आते हैं तो ग़रीबी रेखा के ऊपर वाले लोग भी खाद्य असुरक्षा का शिकार हो सकते हैं।

कौन है खाद्य- असुरक्षित?

भारत में लोगों का एक बड़ा वर्ग खाद्य व पोषण की दृष्टि से असुरक्षित है। ग़रीबी के चलते एक बड़ा तबका भोजन जुटाने में असमर्थ है। इसके अलावा सामाजिक संरचना भी खाद्य असुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और दूसरी पिछड़ी जातियों के लोगों का या तो भूमि का आधार कमजोर होता है या फिर उनकी भूमि की उत्पादकता बहुत कम होती है। साथ ही प्राकृतिक आपदाओं (मानसून) से पीड़ित लोग भी खाद्य-असुरक्षित होते हैं जिन्हें काम की तलाश में दूसरी जगह जाना पड़ता है। इन वर्गों में सबसे ज़्यादा प्रभावित लोगों की सूची नीचे दी गई है।

ग्रामीण क्षेत्र - भूमिहीन, पारंपरिक दस्तकार, पारंपरिक सेवाएँ करने वाले लोग, अपना छोटा-मोटा काम करने वाले कामगार, निराश्रित और भिखारी

शहरी क्षेत्र - परिवार में कामकाजी सदस्यों की कमी और कम वेतन पाने वाले रोज़गार में व्यवसाय

खाद्य सुरक्षा के लिए सरकार की ओर से किए गए प्रयास

भारत सरकार ने भुखमरी से निपटने के लिए कई प्रयास किए हैं इन प्रयासों में -

  • सार्वजानिक वितरण प्रणाली (PDS) 1940
  • समन्वित बाल विकास कार्यक्रम (ICDS) 1975
  • मिड डे मील 1995
  • अंत्योदय अन्न योजना 2000
  • अन्नपूर्णा योजना 2000
  • जननी सुरक्षा योजना 2005
  • राजीव गांधी किशोरी सशक्तीकरण योजना 'सबला' (RGSEAG) 2010 -11
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम
  • राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन
  • इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना 2016
  • ज़ीरो हंगर 2017
  • राष्ट्रीय पोषण अभियान 2017-18
  • ग़रीबी उन्मूलन

भारत में खाद्य सुरक्षा

आज़ादी के बाद से ही नीति निर्मातों ने खाद्यानों पर निर्भरता पाने के लिए क़दम उठाए हैं। भारत में खाद्य सुरक्षा के मुद्दे को दो पीढ़ियों में बांट कर देखा जाता है जिसे फर्स्ट जेनेरेशन और सेकंड जेनेरेशन कहते हैं।

फर्स्ट जेनेरेशन (पहली पीढ़ी)

70 के दशक के शुरू में हरित क्रांति के आने के बाद से मौसम की विपरीत दशाओं के दौरान भी देश में अकाल नहीं पड़ा है। देश भर में उपजाई जाने वाली विविध फसलों के कारण भारत पिछले तीस वर्षों के दौरान खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर बन गया है। सरकार द्वारा सावधानीपूर्वक तैयार की गई खाद्य सुरक्षा व्यवस्था के कारण देश में (खराब मौसम स्थितियों के बावजूद व किसी अन्य कारण से) अनाज की उपलब्धता और भी सुनिश्चित हो गई। दरअसल इस व्यवस्था के दो मुख्य घटक रहे है : बफ़र स्टॉक और सार्वजनिक वितरण प्रणाली।

बफ़र स्टॉक

बफ़र स्टॉक भारतीय खाद्य निगम (FCI) के माध्यम से सरकार द्वारा प्राप्त अनाज, गेहूँ और चावल का भंडार है। भारतीय खाद्य निगम ज़्यादा उत्पादन वाले राज्यों में किसानाें से गेहूँ और चावल खरीदता है। किसानों को उनकी फसल के लिए पहले से घोषित कीमतें दी जाती हैं। इस मूल्य को न्यूनतम समर्थित कीमत कहा जाता है। इन फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से बुआई के मौसम से पहले सरकार न्यूनतम समर्थित कीमत की घोषणा करती है। खरीदे हुए अनाज खाद्य भंडारों में रखे जाते हैं।

बफ़र स्टॉक का काम

बफ़र स्टॉक का काम अनाज की कमी वाले क्षेत्रों और ग़रीब वर्ग को बाज़ार से कम कीमत पर अनाज मुहैया करना होता है। इसके अलावा ये ख़राब मौसम या फिर आपदा के समय में अनाज की कमी की समस्या को हल करने में भी मदद करता है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली

भारतीय खाद्य निगम FCI जिन अनाजों को किसानों से खरीदती है उसे सरकार द्वारा विनियमित राशन दुकानों के ज़रिए समाज के ग़रीब तबक़ों में पहुँचाती है। इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पी-डी-एस-) कहते हैं। ज़्यादातर क्षेत्रों में राशन की इन दुकानों को 'कोटा' भी कहा जाता है। राशन की दुकानों में, सरकार द्वारा निर्धारित अनाज, चीनी और खाना पकाने के लिए मिटी का तेल उपलब्ध होता है। ये सब बाजार कीमत से कम कीमत पर लोगों को बेचा जाता है। राशन कार्ड रखने वाला कोई भी परिवार प्रतिमाह इनकी एक अनुबंधित मात्र (जैसे 35 किलोग्राम अनाज, 5 लीटर मिट्टी का तेल, 5 किलोग्राम चीनी आदि) निकटवर्ती राशन की दुकान से खरीद सकता है।

साल 1974 में विश्व खाद्य सम्मेलन (World Food Conference-WFC) हुआ जिसमें सभी देशों के लिए खाद्य सुरक्षा को परिभाषित किया गया। WFC सम्मलेन के मुताबिक़ खाद्य सुरक्षा का मतलब ये है कि "सभी देशों के पास हर वक़्त पर्याप्त मात्रा में खाद्य सामग्री उपलब्ध रहे" भारत ने खाद्य सुरक्षा को पुख़्ता बनाने के लिए हरित क्रांति जैसे क़दम उठाए। लेकिन हरित क्रांति के विनाशकारी पर्यावरणीय प्रभाव के चलते इसकी काफी अधिक आलोचना भी की गई।

सेकंड जेनेरेशन (दूसरी पीढ़ी)

1992 तक सार्वजनिक वितरण प्रणाली किसी विशेष लक्ष्य के बगैर सभी उपभोक्ताओं के लिये एक सामान्य योजना थी। इसे जून, 1997 में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS ) का रूप दिया गया। उस वक़्त TPDS के तहत प्रत्येक बीपीएल परिवारों को महीने में सिर्फ 10 किलोग्राम अनाज दिया जाता था जिसे अप्रैल 2000 में बढ़ाकर 20 किलो प्रति परिवार किया गया।

सरकार ने एक बार फिर इसे बढ़ाया और जुलाई 2001 से 25 किलो कर दिया। इसी दौरान सरकार ने अंत्योदय अन्न योजना शुरू की और उनको भी प्रतिमाह 25 किलो अनाज का आवंटन किया गया। इसके बाद अप्रैल 2002 में APL, BPL, और अंत्योदय अन्न योजना के तहत भी प्रति परिवार 35 किलो अनाज देने का फैसला किया गया।

1980 और 1990 के दशक में सुप्रीम कोर्ट ने भोजन को मूल अधिकारों में मानव गरिमा का अभिन्न हिस्सा बताया। 1980 और 1990 के ही दशक में अमर्त्य सेन (आर्थिक विशेषज्ञ) ने बताया कि खाद्य आपूर्ति में बढ़ोत्तरी किए बाद भी भारत भूख को कम करने में सफल नहीं हो सका। अमर्त्य सेन के शोधों से पता चला कि भूख और खाद्य सुरक्षा मुख्य रूप से ‘पहुँच’ के मुद्दे से जुड़े हुए थे। पर्याप्त मात्रा में अनाज और सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसे अलग -अलग सरकारी प्रयासों के बावजूद लोग भुखमरी से मर रहे थे क्योंकि वे शारीरिक या वित्तीय या दोनों ही तरह से भोजन तक पहुँचने में असमर्थ थे।

अब हो रही है थर्ड जेनेरेशन की मांग

आज़ादी मिलने से लेकर ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013’ के बनने के बाद भी देश की सूरत-ए-हाल में कोई बदलाव नहीं आया है। इसलिए "तीसरी पीढ़ी" के खाद्य सुरक्षा क़ानून बनाए जाने की ज़रूरत महसूस की जा रही है इसमें -

1. प्राकृतिक आपदा
2. जलवायु परिवर्तन
3. खेती किसानी का संकट
4. केंद्र और राज्य सरकार के बीच सामंजस्य की कमी
5. खाद्य समाग्री की वितरण PDS प्रणाली जैसी सार्वनजिक सेवाओं का भ्रष्टाचार में लिप्त होना
6. कार्बनडाइ ऑक्साइड के ज़्यादा उत्सर्जन के कारण खाद्य पदार्थों के नष्ट होते पोषक तत्व
7. बढ़ती महंगाई, जनसंख्या, निरक्षरता, असमानता
8. और बेरोज़गारी जैसे कारकों में सुधार की ज़रूरत है।
9. इसके आलावा थर्ड जेनेरेशन के खाद्य सुरक्षा क़ानून में 'इनोवेशन और होलिस्टिक रिवाइवल' की भी ज़रूरत है नहीं तो तेज़ी से बढ़ती इन चुनौतियों की वजह से Sustainable Development Goals - 2 के लक्ष्य (2030 तक दुनिया के सभी देश में ग़रीबी और भुखमरी को समाप्त करना) को पूरा करना मुश्किल हो जायेगा। साथ ही थर्ड जेनेरेशन क़ानून में खाद्य सुरक्षा के सभी (चारो) आयामों को पूरा करने जैसे बनाया जाना चाहिए।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा का मक़सद देश के सभी लोगों तक पोषण युक्त भोजन उपलब्ध करना है जिससे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

  • ग्रामीण क्षेत्रों में 75 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 50 प्रतिशत लोगों को हर माह 5 किलोग्राम प्रति व्यक्ति अनाज पाने का अधिकार।
  • अधिनियम के तहत तहत ग़रीबों को 2 रुपए प्रति किलो गेहूँ और 3 रुपए प्रति किलो चावल देने की व्यवस्था
  • महिलाओं और 14 साल तक के बच्चों के लिये पोषणयुक्त भोजन।
  • मातृत्व सहयोग के रूप में गर्भवती महिलाओं को 6,000 रुपये की आर्थिक मदद।
  • इस अधिनियम के तहत राशनकार्ड परिवार की वयोवृद्ध महिला या 18 वर्ष से अधिक उम्र की महिला के नाम बनता है।
  • शिकायत निवारण के लिये जिला और राज्य-स्तरीय तंत्र।
  • अनाज न मिलने पर लाभार्थी को खाद्यान्न भत्ता प्राप्त करने का अधिकार।
  • लाभार्थियों की पहचान की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की।
  • खाद्य सुरक्षा अधिनियम को लागू करने के लिये राज्यों को 549.26 लाख टन खाद्यान्न का आवंटन।
  • पूरे देश में इस क़ानून के लागू होने के बाद 81.34 करोड़ लोगों को 2 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से गेहूँ और 3 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से चावल दिया जा रहा है।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 की ख़ामियां

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 में "भोजन के अधिकार" की गारंटी मिलने की बाद भी मुश्किलें बरक़रार हैं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम NFSA को उस रूप में पेश नहीं किया जा सका जिस रूप में इससे उपेक्षा की गई थी।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम NFSA भोजन के सार्वभौमिक अधिकार की गारंटी नहीं देता है।
  • NFSA कुछ मानदंडों के आधार पर भोजन के अधिकार को सीमित करता है।
  • इस अधिनियम में ये भी क़ानून है कि ये "युद्ध, बाढ़, सूखा, आग, चक्रवात या भूकंप" की स्थिति में लागू नहीं होगा जब तक कि केंद्र इसकी अनुमति नहीं देती।

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज V/S यूनियन ऑफ़ इंडिया

साल 2001 में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की। दाख़िल याचिका में 'भोजन के अधिकार' को मौलिक अधिकार घोषित किए जाने की वक़ालत की गई।

बाद में कोर्ट ने साल 2013 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act-NFSA) को प्रस्तुत किया जिसके तहत सभी भारतीयों को मात्रात्मक "भोजन के अधिकार" की गारंटी प्रदान की गई।

शांता कुमार समिति की रिपोर्ट

साल 2014 में सत्ता में आई NDA सरकार ने भारतीय खाद्य निगम (FCI) के कामकाज में सुधार और पुनर्गठन के लिए एक उच्च स्तरीय शांता कुमार समिति का गठन किया था। शांता कुमार समिति ने FCI के काम और उसके काम के तरीके में बदलाव के लिए कई सिफारिशें की थीं। शांताकुमार समिति की रिपोर्ट की सिफ़ारिशों की मुख्य बातें -

  • 67 प्रतिशत की जगह कुल 40 प्रतिशत आबादी को सस्ते दर पर खाद्य पदार्थ दिया जाय
  • योजना के तहत दिए जाने वाले चावल और गेहूं का मूल्य क्रमश: तीन रुपए और दो रुपए प्रति किलो से बढ़ाकर उनके न्यूनतम समर्थन मूल्य का आधा कर दिया जाय.
  • जिन राज्यों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली को पूरी तरह कंप्यूटरीकृत नहीं किया गया है उन राज्यों में इसे इसके बाद लागू किया जाय
  • किसानों को नकद सब्सिडी का सीधा भुगतान किया जाए

केंद्र की NDA सरकार ने शांता कुमार समिति की सिफारिशों को अमल में नहीं लिया है। ग़ौरतलब है कि यूपीए की सरकार में जब राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 पर भारतीय संसद में बहस हो रही थी तो भाजपा के नेताओं ने इसे ज्यादा मज़बूत बनाने की पैरवी की थी।

आगे की राह

संयुक्त राष्ट के मुताबिक़ खाद्य सुरक्षा में संघर्ष, हिंसा, जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदा जैसे कई महत्वपूर्ण कारक शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन को देखते हुए स्मार्ट कृषि की ज़रूरत है। भारत के लिहाज़ से खाद्य सुरक्षा क़ानून के कार्यविधि में पारदर्शिता और निगरानी पर ज़ोर दिए जाने की भी ज़रूरत है। इसके आलावा खाद्य सामग्री के रख रखाव के लिए कोल्ड स्टोरेज़ की अच्छी व्यवस्था, स्वास्थ्य, शिक्षा और स्वछता जैसे मामलों में भारत को बेहतर बनाना और लिंग समानता जैसे मत्वपूर्ण कारक शामिल हैं।

भारत इस क्षेत्र में सकल घरेलु उत्पाद का सिर्फ 1.4 % ही खर्च होता है ऐसे में इस गंभीर समस्या को देखते हुए इसे बढ़ाए जाने की ज़रूरत है। IFPRI रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में कुपोषण की उच्च दर के कारण देश भूख का स्तर गंभीर है, इसलिए सामाजिक प्रतिबद्धता दिखाए जाने की भी सख़्त ज़रूरत है।